अपनों का छूटा साथ तो वृद्धा आश्रम बना सहारा

अपनों का छूटा साथ तो वृद्धा आश्रम बना सहारा

बस्ती/यूपी: जिस कोख ने नौ माह पालकर दुनिया को देखने के लायक बनाया और जिन हाथों ने अंगुली पकड़ चलना सिखाया और जिंदगी में तमाम दुश्वारियां लाचारियों और मुश्किलों के बावजूद कभी कोई कमी नहीं रहने दी। आज उन्हें हाथों ने बुजुर्गों को घर से बाहर निकाल दिया। सिर्फ वृद्धा आश्रम ही उनके लिए घर बन गया है। हम आपको उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के बनकटा में बने वृद्धा आश्रम में मौजूद बुजुर्गों की बेबसी और उनके हालातों के बारे में बताएंगे कि आखिर कैसे वह अपनों के बीच से इस तरह निकल गए कि आज उनकी आंखों में सिर्फ इंतजार के अलावा और कुछ भी नहीं है। 


बस्ती के वृद्धा आश्रम में करीब 80 बुजुर्ग इस समय रह रहे हैं। यहां स्थानीय जिले के अलावा सिद्धार्थनगर, संत कबीर नगर, गोरखपुर, देवरिया बिहार सहित अलग-अलग जिलों और राज्यों के बुजुर्ग लंबे समय से रहकर समय गुजर रहे हैं। वृद्ध आश्रम प्रबंधन की तरफ से रहने, खाने, दवा, इलाज सुरक्षा और मनोरंजन के पर्याप्त इंतजाम किए गए हैं। फिलहाल जब हम लोग वृद्ध आश्रम में पहुंचे तो उस समय रामचरितमानस का पाठ चल रहा था और सभी लोग इसका श्रवण कर रहे थे। 

वृद्धा आश्रम के संचालक अतुल शुक्ल ने बताया कि यहां कई ऐसे बुजुर्ग हैं जिनका बहुत प्रयास के बाद भी पहचान नहीं हो पाया। वह कई साल से यहां पर रह रहे हैं। एक बुजुर्ग ने बताया की उनकी एक बेटी थी और जब पत्नी का देहांत हो गया तो उन्होंने बेटी को अपने भाई को जिम्मेदारी के तौर पर सौंप दिया। अब वह लंबे समय से यहीं पर रह रहे हैं। घर वालों की याद तो आती है लेकिन उनके पास यहां से जाकर वहां रहने का कोई इंतजाम नहीं है। 

एक अन्य बुजुर्ग ने बताया कि उनका इकलौता बेटा शराब का आदी हो गया है। शराब के नशे में वह रोज शाम को उनकी पिटाई करता था। एक दिन तंग आकर उन्होंने वृद्ध आश्रम आने का फैसला लिया और वह तब से यहीं पर रह रहे हैं। परिवार की साथ रहने के सवाल पर फफक पड़े और कहा की जब अपनों ने ही किनारा कर लिया और जहां पर अपनापन न हो तो वहां रहना मुनासिब नहीं होगा। बेटियों के साथ रहने के सवाल पर कहा कि हम मारवाड़ी परिवार के हैं और हमारे समाज में बेटियों के घर रहना ठीक नहीं माना जाता है। 

गोरखपुर जिले से वृद्धा आश्रम पहुंचे एक दंपति ने बताया कि वह चार बेटियों और तीन बेटों के परिवार को छोड़कर यहां आए हैं। जमीन जायदाद खेती-बारी सब बच्चों ने ले लिया। जब हमारे प्रति अपनी जिम्मेदारियां के निर्वहन की बात आई तो उन्होंने बेसहारा छोड़ दिया। यह बात सच है कि यहां सिर्फ शरीर है मन हमेशा परिवार और बच्चों की किलकारी में ही लगा रहता है। लेकिन बेबसी का आलम यह है की चाह कर वहां जा नहीं सकते। जब अपने ही दुश्मन बनकर बेगानों जैसा दुर्व्यवहार करने लगे तो आखिर कैसे मन लगेगा।

 इस वृद्धा आश्रम की तस्वीर और हालात बहुत कुछ बयां करते हैं कि कैसे अपनों के हाथ से छूटे हुए हाथ यहां पूरा संसार ढूंढ लेते हैं। धीरे-धीरे इसी को अपना आशियाना मानकर जीवन के अंतिम दौर में हर मिनट इस गेट पर टकटकी लगाए रहते हैं। यह उम्मीद है कि कभी कोई अपना आएगा और कान पड़कर माफी मांगेगा और कहेगा कि अब अपने घर चलिए आपके घर को और हमको आपका इंतजार है। आश्रम में रह रहे अधिकांश बुजुर्गों के पास घर परिवार बेटा बेटी हैं।